तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणिन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। 2/68
हे अर्जुन! जिसने इंद्रियों को मोह-माया और ऐसी ही रमने वाली चीजों से हटाकर अपने वश में कर लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
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जैसे आग में घी डालने से आग और बढ़ती है, वैसे ही इच्छा पूरी करने की चाह मन की आग को और भड़काती है। इससे बचने का एक ही तरीका है और वह यह कि मन को इच्छाओं से हटा लिया जाए। जब तक इंद्रियों को मन और बुद्धि के साथ नहीं लगाएंगे वे कभी शांत ही नहीं होंगी। जैसे ही इंद्रियां बुद्धि के साथ आएंगी वे इंसान के वश में आने लगेंगी। इसके फलस्वरूप बुद्धि का भटकना थम जाएगा और वे स्थिर हो जाएंगी।
हे अर्जुन! जिसने इंद्रियों को मोह-माया और ऐसी ही रमने वाली चीजों से हटाकर अपने वश में कर लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
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जैसे आग में घी डालने से आग और बढ़ती है, वैसे ही इच्छा पूरी करने की चाह मन की आग को और भड़काती है। इससे बचने का एक ही तरीका है और वह यह कि मन को इच्छाओं से हटा लिया जाए। जब तक इंद्रियों को मन और बुद्धि के साथ नहीं लगाएंगे वे कभी शांत ही नहीं होंगी। जैसे ही इंद्रियां बुद्धि के साथ आएंगी वे इंसान के वश में आने लगेंगी। इसके फलस्वरूप बुद्धि का भटकना थम जाएगा और वे स्थिर हो जाएंगी।
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