Monday, 20 July 2015

सद्गुणों में संतुलन


एक दिन एक धनी व्यापारी ने चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्स से पूछा-'आपका शिष्य येन कैसा व्यक्ति है?' लाओत्स ने उत्तर दिया-'उदारता में वह मुझसे श्रेष्ठ है।' 'आपका शिष्य कुंग कैसा व्यक्ति है?' व्यापारी ने फिर पूछा। लाओत्स ने कहा-'मेरी वाणी में उतना सौंदर्य नहीं है जितना उसकी वाणी में है।' व्यापारी ने फिर पूछा- 'और आपका शिष्य चांग कैसा व्यक्ति है?' लाओत्स ने उत्तर दिया-'मैं उसके समान साहसी नहीं हूं।'
व्यापारी चकित हो गया, फिर बोला-'यदि आपके शिष्य किन्हीं गुणों में आपसे श्रेष्ठ हैं तो वे आपके शिष्य क्यों हैं? ऐसे में तो उनको आपका गुरु होना चाहिए और आपको उनका शिष्य!' लाओत्स ने मुस्कराते हुए कहा-'ये सभी मेरे शिष्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने मुझे गुरु के रूप में स्वीकार किया है। और उन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वे यह जानते हैं कि किसी सद्गुण विशेष में श्रेष्ठ होने का अर्थ ज्ञानी होना नहीं है।'

'तो फिर ज्ञानी कौन है?' व्यापारी ने प्रश्न किया। लाओत्स ने उत्तर दिया-'वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो।'

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