Thursday, 23 July 2015

पेंसिल से जानिए सुखी जीवन के 7 गुरुमंत्र

दोस्तों, पेंसिल के आविष्कारक ने पैकेट में बंद करने से पहले से पेंसिल से कहा, मैं तुम्हें इस दुनिया में बेहतरीन कार्य करने के लिए भेज रहा हूँ लेकिन उससे पहले तुम्हें ये सात गुरुमंत्र याद करने होंगे तभी तुम इस दुनिया कि सबसे बेहतरीन और सर्वश्रेष्ठ पेंसिल कहलाओगी.. 

(1) इस संसार ,में तुम्हारा रूप-रंग और आकार कैसा भी हो, तुम खुद को हमेशा आगे लाने का प्रयत्न करना, कभी मत समझना कि तुम्हारे चाहने वालों की कमी होगी...
(2) तुम इस संसार में एक बेहतर कार्य करने के लिए जा रही हो, दूसरों के हाथों में विश्वास पैदा करने से पहले तुम्हें खुद पर यह भरोसा रखना होगा कि तुम सामने वाले के लिए सही हो... 
(3) तुम्हारी बीच-बीच में छिलाई की जायेगी, लेकिन उस पीड़ा से मत घबराना, समय के साथ तुम्हारी बेहतरी निखरती जायेगी... 
(4) तुम अपनी गलतियाँ दूसरों पर मत लादना, खुद की गलती को स्वीकारना और अपनी गलती को सुधारने की योग्यता रखना.. 
(5) तुम्हें कई प्रकार से अपने में मजबूती लानी होगी जिससे तुम हर भावना के प्रति कागज में अपनी छाप छोड़ जाओ... 
(6) तुम्हारी बाहरी परत से लोग तुम्हें प्यार करें ये जरुरी नहीं क्यूंकि तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा तुम्हारे अंदर है यह हमेशा याद रखना... 
(7) समय के साथ तुम्हारे अंदर भी कई परिवर्तन किये जायेंगे लेकिन तुम दुनिया के किसी भी कोने में रहो लिखना मत छोडना, कहीं कैसी भी परिस्थितियां हों वहाँ अपने निशान छोड़ जाना... दोस्तों पेंसिल ने तो इन सात बातों को बखूबी निभाया और इन्हें अपने लक्ष्य का हिस्सा मानकर वह अपने डिब्बे के अंदर चली आई. आप खुद भी उस पेंसिल के अपने नियमों को देखिये उसके जगह खुद को रखिये और अपने आपको एक श्रेष्ठ व्यक्ति बनाने के लिए आगे आइये.. इसके लिए हम पेंसिल के सफल मन्त्रों को ही अपना गुरुमंत्र मानते हैं, और एक सफल और कामयाब व्यक्ति बनने के लिए आइये हमारे इन सात गुरुमंत्रों को देखते हैं:- 

गुरुमंत्र(1.) इस संसार में हम सब में भिन्नता है, हमारा रूप-रंग या आकार एक जैसा नहीं है उसी प्रकार भगवान ने भी हम सबके अंदर कई विशेष गुण दिए हैं, गुणों में भी भिन्नता है, सबके अंदर कमाल का Talent मौजूद है लेकिन यदि आप अपने गुणों को दबाए रखेंगे तो यक़ीनन आपकी पहचान दब कर रह जायेगी, इसलिए अपने आपको आगे लाने के लिए प्रयत्न कीजिये, जैसे-जैसे आपके गुणों से लोग प्रभावित होंगे, आपके चाहने वालों की संख्या बढ़ती जायेगी और इससे आपके गुणों में भी वृद्धि होती जाएँगी और यह समय के साथ ही निखरती जाएँगी... 

गुरुमंत्र(2.) यह तो सफलता के नजदीक पहुचने का सबसे अच्छा रास्ता है मतलब खुद पर भरोसा, खुद पर विश्वास यानी जीत के करीब आप पहुच गए.. कोई भी कार्य आपके लिए असंभव नहीं है लेकिन यह बहुत जरुरी है कि आप स्वयं पर कितना विश्वास करते हैं.. लोगों का विश्वास आप पर तभी होगा, जब आपका स्वयं के ऊपर अटूट विश्वास होगा, इसलिए अपने और अपनी सफल होने की चाहत के विश्वास को डगमगाने मत दीजिए... 

गुरुमंत्र(3.) तुम्हें बार-बार विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, बार-बार चोंट खाओगे, गिरोगे और ठोंकरे लगेंगी लेकिन यह सिर्फ तुम्हें परखने के लिए सिर्फ तुम्हारी परीक्षा मात्र होगी, इसलिए कभी भी इनसे मत घबराना जो तुम्हें निराश करें, याद रखना तुम अभी चोंट इसलिए खा रहे हो क्यूंकि तुम्हें मजबूत बनना है और कल समय गवाह होगा जब कई मुश्किलों के बाद तुम अपनी जीत का परचम लहराए खड़े रहोगे... समय के साथ तुम्हारी पहचान बढ़ती जायेगी लेकिन हार मत मानना, डटे रहना, लगे रहना क्यूंकि जीत तुम्हारी ही होगी... 

गुरुमंत्र(4.) जब तुम अपनी कामयाबी का श्रेय खुद को देते हो तो नाकामयाबी हासिल होने पर गलतियाँ दूसरों पर क्यों निकालते हो, किसी की बर्बादी के लिए दूसरे ज्यादा जिम्मेदार नहीं होते जितना कि वो खुद रहता है.. सफल होने के लिए तुम्हें समझना होगा कि वाकई अपनी गलतियाँ दूर करके तुम कितने आगे जा सकते हो, जितना समय तुम दूसरों की गलतियाँ खोजने में लगाते हो उतना यदि खुद की गलती को खोजकर उसे सही करने का प्रयास करोगे तो तुम बहुत आगे जाओगे.. इसलिए अपनी गलतियों को को स्वीकारना और उन्हें सुधारने की योग्यता रखना और यह काम सिर्फ आप कर सकते हो क्योंकि बदलना आपको है... 

गुरुमंत्र(5.) तुम्हें अपने आपको मजबूत करना होगा, परिस्थितियां तुम्हारे अनुकूल नहीं बनाई गयी हैं, सुख-दुःख, हार-जीत के ऐसे पड़ाव में रोकर अपना कीमति आँसू पोंछने के बजाय आखरी दम तक कोशिश करना, विपरीत परिस्थिति में भी अपने जीत के निशान छोड़ जाना... 

गुरुमंत्र(6.) तुम जो भी काम करना दिल से करना, अपना फायदा देखने से पहले यह सोचना की सामने वाले को भी इससे बहुत लाभ मिले, लोग आपको इसलिए प्यार नहीं करेंगे कि आपकी सकल सूरत बहुत अच्छी है वो तो इससे प्यार करेंगे कि आपका दिल कितना प्यारा है, आप कितने अच्छे इंसान हैं... याद रखिये तुम्हारा सबसे अनमोल रत्न तुम्हारे अंदर मौजूद है, और इसी से तुम्हारी प्रसंशा होगी और वो ये हैं- तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा दिल, तुम्हारा चरित्र और तुम्हारा प्रेम... जो सदैव तुम्हारे जीत का कारण बनेंगे.. 

गुरुमंत्र(7.) तुम कैसे भी जियो, जहाँ भी रहो, जहाँ भी जाओ वहाँ अपनी छाप छोड़ जाना. पूरी ताकत से अपना कर्तव्य निभाना.. और अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सब काम करना... ऐसा काम करना कि लोग तुम्हें मरणोपरांत भी याद रखें.... दोस्तों एक छोटी- सी पेंसिल से हम अपने जीवन की कितनी सार-पूर्ण बातें समझ सकते हैं आप सब भी अपने जीवन में इन सातों गुरुमंत्र को अपनाएं यक़ीनन आपके अंदर एक बहुत बड़ा और सकारात्मक परिवर्तन नजर आएगा... उम्मीद है ये सातों गुरुमंत्र आपके जीवन में एक अच्छा परिवर्तन लायेंगे..  
Source: Posted on http://www.hamarisafalta.com/ Saturday, 22 November 2014 by-Mr. Kiran Sahu
भगवान को मंदिर में ढूंढ़ने से कोई फायदा नहीं है। जिस शरीर में पवित्र आत्मा रहती है उस शरीर में स्वयं भगवान वास करते हैं।

Tuesday, 21 July 2015

क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

Monday, 20 July 2015

बचन बेष क्या जानिए

दोहा :बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
अर्थ : ‘वाणी और वेश से किसी मन के मैले स्त्री या पुरुष को जानना संभव नहीं है। सूपनखा, मारीचि, रावण और पूतना ने सुंदर वेश धरे पर उनकी नीचत खराब ही थी।’’

खुशी की तलाश

अंजन मुनि अपने आश्रम में अनेक शिष्यों को शिक्षा देते थे। एक दिन वह अपने शिष्यों से बोले,'आज मैं तुम्हें बताऊंगा कि खुशी आसानी से किस तरह मिल सकती है?' सभी शिष्य बोले,'गुरुजी, जल्दी बताइए।' मुनि शिष्यों को एक कमरे में ले गए। वहां ढेर सारी एक जैसी पतंगें रखी हुई थीं। मुनि शिष्यों से बोले,'इन पतंगों में से एक-एक उठाकर सभी अपना नाम लिखकर वापस वहीं रख दो।' सभी शिष्यों ने एक-एक पतंग पर अपना नाम लिखा और वापस वहीं रख दिया।

कुछ देर बाद मुनि बोले,'अब सभी अपने नाम की पतंग लेकर मेरे पास आओ।' यह सुनकर शिष्यों में भगदड़ मच गई और अपने नाम की पतंग लेने के चक्कर में सारी पतंगें फट गईं। इसके बाद मुनि उन्हें दूसरे कमरे में ले गए। वहां भी ढेरों पतंगें थीं। उन्होंने सब शिष्यों को एक-एक पतंग पर अपना नाम लिखने के लिए कहा। इसके बाद वह बोले,'अब, तुम सभी इनमें से कोई भी पतंग उठा लो।' सभी शिष्यों ने बिना कोई जल्दबाजी किए आराम से एक-एक पतंग उठा ली।

गुरुजी बोले,'अब तुम एक-दूसरे से अपने नाम वाली पतंग प्राप्त कर लो।' सभी शिष्यों ने बगैर खींचतान किए और बगैर पतंगें फाड़े अपने-अपने नाम की पतंग प्राप्त कर ली। गुरुजी बोले,'हम खुशी की तलाश इधर-उधर करते हैं, जबकि हमारी खुशी दूसरों की खुशी में छिपी है।' जब तुमने केवल अपने नाम की पतंग तलाशनी चाही तो आपाधापी में सारी पतंगें फट गईं। दूसरी बार तुमने आराम से पतंग उठाकर दूसरे के नाम की पतंग उसे सौंप दी। इस तरह उसे भी खुशी मिल गई और तुम्हें भी अपने नाम की पतंग मिल गई। असल खुशी दूसरों की मदद कर उन्हें खुशी देने में है।

सद्गुणों में संतुलन


एक दिन एक धनी व्यापारी ने चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्स से पूछा-'आपका शिष्य येन कैसा व्यक्ति है?' लाओत्स ने उत्तर दिया-'उदारता में वह मुझसे श्रेष्ठ है।' 'आपका शिष्य कुंग कैसा व्यक्ति है?' व्यापारी ने फिर पूछा। लाओत्स ने कहा-'मेरी वाणी में उतना सौंदर्य नहीं है जितना उसकी वाणी में है।' व्यापारी ने फिर पूछा- 'और आपका शिष्य चांग कैसा व्यक्ति है?' लाओत्स ने उत्तर दिया-'मैं उसके समान साहसी नहीं हूं।'
व्यापारी चकित हो गया, फिर बोला-'यदि आपके शिष्य किन्हीं गुणों में आपसे श्रेष्ठ हैं तो वे आपके शिष्य क्यों हैं? ऐसे में तो उनको आपका गुरु होना चाहिए और आपको उनका शिष्य!' लाओत्स ने मुस्कराते हुए कहा-'ये सभी मेरे शिष्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने मुझे गुरु के रूप में स्वीकार किया है। और उन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वे यह जानते हैं कि किसी सद्गुण विशेष में श्रेष्ठ होने का अर्थ ज्ञानी होना नहीं है।'

'तो फिर ज्ञानी कौन है?' व्यापारी ने प्रश्न किया। लाओत्स ने उत्तर दिया-'वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो।'

शिवाजी का अभिमान


छत्रपति शिवाजी ने अपने पराक्रम से अनेक युद्धों में विजय पाई। इससे उनके मन में थोड़ा अभिमान गया। उन्हें लगता था कि उनके जैसा वीर धरती पर और कोई नहीं है। कई बार तो उनका यह घमंड औरों के सामने भी झलक पड़ता। एक दिन शिवाजी के महल में उनके गुरु समर्थ रामदास पधारे। शिवाजी वैसे तो अपने गुरु का बहुत आदर करते थे, लेकिन उनके सामने भी उनका अभिमान व्यक्त हो ही गया। उन्होंन कहा, 'गुरुजी अब मैं लाखों लोगों का रक्षक और पालक हूं। मुझे उनके सुख-दुख और भोजन-वस्त्र आदि की हर समय चिंता करनी पड़ती है।'
रामदास समझ गए कि उनके शिष्य के मन में राजा होने का अहंकार हो गया है। इसे तोड़ने के लिए उन्होंने एक तरकीब सोची। शाम को शिवाजी के साथ भ्रमण करते हुए रामदास ने अचानक उन्हें एक बड़ा पत्थर दिखाते हुए कहा, 'शिवा, जरा इस पत्थर को तोड़कर तो देखो।' शिवाजी ने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए तत्काल वह पत्थर तोड़ डाला। किंतु यह क्या, पत्थर के बीच से एक जीवित चींटी एक दाना मुंह में दबाए बैठी दिखी।

यह देखकर शिवाजी चकित रह गए। फिर समर्थ रामदास ने पूछा, 'पत्थर के बीच बैठी इस चींटी को कौन हवा-पानी दे रहा है? इसका पालक कौन है? कहीं इसके पालन की जिम्मेदारी भी तुम्हारे कंधों पर तो नहीं पड़ी है शिवा?' शिवाजी गुरु की बात का मर्म समझकर लज्जित हो गए। गुरु ने उन्हें समझाया, 'पालक तो सबका परम पिता परमेश्वर है। हम-तुम तो माध्यम भर हैं। उस पर विश्वास रखकर कार्य करो। सफलता अवश्य मिलेगी।' शिवाजी गुरु का संकेत तुरंत समझ गए।