Thursday, 28 December 2017

कामयाब इंसान खुश रहे ना रहे, खुश रहने वाले इंसान कामयाब जरूर होते हैं |

जिस दिन आप अपनी सोच बड़ी कर लेंगे, बड़े लोग आपके बारे में सोचने लगेंगे | 

Monday, 11 December 2017

ईश्वर का साथ उसी को मिलता है, जो किसी का साथ नहीं खोजते।

Sunday, 11 October 2015

जैसे जल ही कीचड़ का कारण है और जल ही उसे शुद्ध करता है, उसी प्रकार मन ही पाप करता है और पवित्र मन द्वारा ही उन पापों से मुक्ति संभव है ।  






Saturday, 10 October 2015

जब तुम कुछ नहीं जानते , तब तुम बहुत कुछ कहते हो । जब तुम कुछ जान जाते हो , तब कहने के लिये कुछ नहीं रह जाता । 

दुःख दूर करने का उपाय

 दुःख के बारे में मत सोचो और अपने विचारों में परिवर्तन करो । 

Thursday, 8 October 2015

Six Ways To Make People Like You


Principle 1 - Become genuinely interested in other people.
• Principle 2 - Smile.
• Principle 3 - Remember that a person's name is to that person the sweetest and most important sound in any language.
• Principle 4 - Be a good listener. Encourage others to talk about themselves.
• Principle 5 - Talk in terms of the other person's interests.
• Principle 6 - Make the other person feel important-and do it sincerely.

ईश्वर प्राप्ति का मार्ग

एक मंदिर के बहार खड़े मजदूर ने मंदिर के पुजारी से पूछा, पुजारीजी, आप प्रतिदिन ईश्वर की भक्ति करते हैं । धार्मिक ग्रंथो का अध्यन करते हैं । आप हमेशा ईश्वर की शरण में रहते हैं तो निश्चित ही आप ईश्वर के प्रिय हैं । मैं सुबह से काम पर जाता हूँ । दिनभर काम करता हूँ और शाम को खाना खाकर सो जाता हूँ । मुझे ईश्वर प्राप्ति का कोई मार्ग बताएं । 

पुजारी ने कहा -

तुम जिस स्थान पर कार्य कर रहे हो, वह तुम्हारा मंदिर है। जिस निष्ठां से काम करते हो , वही तुम्हारी पूजा है । जिन उपकरणों से काम करते हो, वे ही तुम्हारी पूजन सामग्री हैं । इसके बाद, जो कुछ तुम्हे मिलता है, वही तुम्हारा ईश्वर है । 

Friday, 18 September 2015

रोगमुक्त जीवन कैसे जीएं?


अधिकांश व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को अस्त-व्यस्त रखते है इस कारण रोगों की चपेट में आने लगते हैं। रोगी होने पर एलोपैथी अथवा अन्य चिकित्सकों से इलाज कराते हैं, परन्तु जीवन-चर्या को ठीक करने की ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण रोग जिद्दी (chronic) होने लग जाते हैं। जब रोग घातक स्थिति तक पहुंच जाता है तभी आंख खुलती है व रोग के निवारण के लिए बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। यदि हम पहले से ही सचेत रहकर अपनी जीवनचर्या पर नियन्त्रण रखें तो हम ऋषियों के अनुसार ‘जीवेम शरद: शतम्’ अर्थात् 100 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इसके लिए हमें निम्न सूत्रों को जीवन में अपनाना होगा। 
1)  प्रात:काल सूर्योदय से दो घण्टा पूर्व अवश्य उठें। ऋषियों ने इसे ब्रह्ममुहूर्त्त की संज्ञा दी है। इस समय की वायु में जीवनी शक्ति सर्वाधिक होती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि पेड़-पौधों की वृद्धि इस समय व संधिकाल (दिन-रात के मिलने का समय) में सबसे अधिक होती है। 
2)  प्रात: उठने के पश्चात् ऊषा पान (जलपान) करें। यह जल ताजा पी सकते हैं। यदि रात को ताम्र पात्र में जल
भरकर रख दें वह पीना अधिक लाभप्रद है। ताम्र पात्र को विद्युत रोधी लकड़ी, रबड़, प्लास्टिक के ऊपर रखें इससे पानी में ऊर्जा निहित हो जाती है। यदि सीधा जमीन या स्लैब आदि पर रख दें तो यह ऊर्जा जमीन में चली जाती है। शीत ऋतु में जल को हल्का गर्म करके पीयें व ग्रीष्म ऋतु में सादा (अधिक ठण्डा न हो) लें। जल की मात्रा इच्छानुसार लें। जितना पीना आपको अच्छा लगे- आधा किलो, एक किलो, सवा किलो उतना पी लें। जोर-जबरदस्ती न करें। कर्इ बार अधिक पानी-पीने के चक्कर में हृदय की धड़कन बढ़ती है या पेट में दर्द आदि महसूस देता है, अत: जितना बर्दाश्त हो उतना ही पानी पिया जाए।
3)  जल पीकर थोड़ा टहलने के पश्चात् शौच के लिए जाएं। मल-मूत्र त्यागते समय दांत थोड़ा भींचकर रखे व मुंह बंद रखें। मल-मूत्र त्याग बैठकर ही करना उचित होता है।
4)  मंजन जलपान करने से पहले भी कर सकते हैं व शौच जाने के बाद भी। ब्रुश से ऊपर-नीचे करके मंजन करें। सीधा-सीधा न करें। यदि अंगुली का प्रयोग करना हो तो पहली अंगुली तर्जनी का प्रयोग न करें। अनामिका (Ring Finger) अंगुली का प्रयोग करें, क्योंकि तर्जनी अंगुली से कभी-कभी (मन: स्थिति के अनुसार) हानिकारक तरंगे निकलती हैं जो दांतो, मसूड़ों के लिए हानिकारक हो सकती है। कभी-कभी नीम की मुलायम दातुन का प्रयोग अवश्य करें। इससे दांतों के कीटाणु मर जाते हैं यदि नीम की दातुन से थोड़ा-बहुत रक्त भी आए तो चिन्ता न करें। धीरे-धीरे करके ठीक हो जाएगा। कुछ देर नीम की दातुन करते हुए रस चूसते रहें उसके पश्चात् थोड़ा-सा रस पी लें। यह पेट के कीटाणु मार देता है। यदि पायरिया के कारण दाँतों से रक्त अधिक आये तो बबूल की दातुन का प्रयोग करें वह काफी नरम व दाँतों को मजबूती प्रदान करने वाली होती है। मंजन दोनों समय करना अच्छा रहता है- प्रात:काल व रात्रि सोने से पूर्व। परन्तु दोनों समय ब्रुश न करें। एक समय ब्रुश व एक समय अंगुलि से मंजन करें। अधिक ब्रुश करने से दाँत व मसूढ़े कमजोर होने का भय बना रहता है। मंजन करने के पश्चात् दो अंगुलि जीभ पर रगड़कर जीभ व हलक साफ करें। हल्की उल्टी का अनुभव होने से गन्दा पानी आँख, नाक, गले से निकल आता है।
5)  स्नान ताजे जल से करें, गर्म जल से नहीं। ताजे जल का अर्थ है जल का तापक्रम शरीर के तापक्रम से कम रहना चाहिए। छोटे बच्चों (5 वर्ष से कम) के लिए अधिक ठण्डा जल नहीं लेना चाहिए। शरद् ऋतु में भी जल का तापक्रम शरीर के तापक्रम से कम ही होना चाहिए, परन्तु बच्चों वृद्धों व रोगियों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिए। स्नान सूर्योदय से पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। रात्रि में पाचन तन्त्र के क्रियाशील रहने से शरीर में एक प्रकार की ऊष्मा (heat) बनती है जो शीतल जल में स्नान करने से शांत हो जाती है, परन्तु यदि सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं किया गया तो सूर्य की किरणों के प्रभाव से यह ऊष्मा और बढ़ जाती है तथा सबसे अधिक हानि पाचन तन्त्र को ही पहुंचाती है।
6) स्नान के पश्चात् भ्रमण (तेज चाल से), योगासन, प्राणायाम, ध्यान, पूजा का क्रम बनाना चाहिए। इसके लिए प्रतिदिन आधा से एक घण्टा समय अवश्य निकालना चाहिए। बच्चों को भी मंदिर में हाथ जोड़ने, चालीसा आदि पढ़ने का अभ्यास अवश्य कराना चाहिए।
7)   भोजन दो बार करना चाहिए। भोजन करने का सबसे अच्छा समय प्रात: 8 से 10 बजे व सायं 5 से 7 बजे के बीच है। यदि कोर्इ भारी खाद्य पदार्थ लेना है तो प्रात: के भोजन में ही लें, क्योंकि पाचन क्षमता सूर्य से प्रभावित होती है। 12 बजे के आस-पास पाचन क्षमता सर्वाध्कि होती है, अत: 10 बजे किया गया भोजन बहुत अच्छे से पच जाता है। अन्न वाले खाद्य पदार्थ दो बार से अधिक न लें। 40 वर्ष की उम्र के पश्चात तो अन्न (भोजन) की आवश्यकता केवल दिन में एक बार ही रह जाती है।
8) शरीर से दिनभर में कोर्इ ऐसा शारीरिक परिश्रम (Physical Exercise) का कार्य अवश्य करें जिसमें पसीना
निकलता है इससे खून की सफार्इ हो जाती है।
9) भोजन के पश्चात् घण्टा दो घण्टा जल न पीएं। यदि आवश्यकता लगे तो भोजन के बीच अल्पमात्रा में पानी पीएं, क्योंकि अधिक जल पीने से पाचक रस मन्द हो जाते हैं।
10) भोजन पेट की भूख से तीन चौथार्इ करें। एक चौथार्इ पेट खाली रखें। जब पेट भरने लगे अथवा डकार आ जाए तो भोजन करना बन्द कर दें। ठूस-ठूस कर खाने से शरीर भारी हो जाता है।
11) सप्ताह में एक दिन इच्छानुसार स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं। पांच दिन सामान्य भोजन करें व एक दिन व्रत अवश्य करें। सामान्य भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग कम से कम करें।
12) घी का सेवन वही करें जो शारीरिक कार्य अधिक करते हैं। मानसिक कार्य करने वाले घी का सेवन अल्प मात्रा में ही करें।
13)  25 वर्ष की आयु तक इच्छानुसार पौष्टिक भोजन करें। 25 वर्ष से 40 वर्ष की आयु तक नियंत्रित भोजन करना चाहिए। 40 वर्ष के पश्चात् बहुत सोच-समझकर भोजन करना चाहिए।
14) भोजन से पूर्व अपनी मानसिक स्थिति शान्त कर लें। भोजन करते हुए किसी भी प्रकार के तनाव, आवेश, भय, चिन्ता के विचारों से ग्रस्त न हों। भोजन र्इश्वर का प्रसाद मानकर प्रसन्न मन से करें। भोजन को खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए। आचार्य भाव मिश्र कहते हैं:-
      र्इष्र्याभयक्रोध् समन्वितेन, लुब्धेन रुग् दैन्यनिपीड़ितेन।
      विद्वेष युक्तेन च सेव्यमान, अन्नं न सम्यक् परिपाकमेति।।
      अर्थात् भोजन के समय र्इष्र्या, भय, क्रोध्, लोभ, रोग, दीनता का भाव, विद्वेष रखने से खाया हुआ अन्न भली-भांति नहीं पचता है, जिससे रस रक्तादि की उत्पत्ति भी ठीक प्रकार शुद्ध रूप से नहीं होती है। अत: सुखपूर्वक बैठकर प्रसन्नता से धीरे-धीरे खूब चबा-चबा कर भोजन करना चाहिये।
15)   दूध् या पेय पदार्थों को जल्दी-जल्दी नहीं गटकना चाहिए। धीरे-धीरे चूस-चूस कर पीना चाहिए। पेय
पदार्थों का तापक्रम न तो अधिक गर्म हो न ही अधिक शीतल।
16) चीनी व चीनी से बनी चीजों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। चीनी को सफेद जहर की संज्ञा दी गयी
है। शुगर की आवश्यक पूर्ति के लिए फलों का प्रयोग करना चाहिए।
17)  आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य इन तीनों बातों से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। आहार में मांस, अण्डा, शराब, मिर्च-मसाले व अधिक नमक से बचना चाहिए। निद्रा छ: से आठ घण्टे के बीच लेनी चाहिए व अश्लील चिन्तन से बचना ही ब्रह्मचर्य है।
18)  जीवन आवेश रहित होना चाहिए। र्ईर्ष्या-द्वेष, बात-बात पर उत्तेजित होने का स्वभाव जीवनी शक्ति को भारी क्षति पहुंचाता है।
19)  रात्रि को सोते समय मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। लम्बे समय तक मच्छरनाशक रसायनों के उपयोग से मनुष्य को सर्दी-जुकाम, पेट में ऐंठन और आंखों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये लक्षण और विकृतियां पायरेथ्राइडस नामक कृत्रिम कीटनाशक के कारण होती हैं जो कीटों के तंत्रिका तन्त्र पर हमला करता है। सेफ्टी वाच समूह ‘सी.यू.टी.एस.’ ने अपने नए प्रकाशन ‘इज इट रियली सेफ’ में बताया है कि ये रसायन मानव शरीर के लिए बहुत-ही विषैले और हानिकारक होते हैं।
20)  भोजन बनाते समय साबुत दालों का प्रयोग करना चाहिए। छिलका उतरी दालों का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए। आटा चोकर सहित मोटा प्रयोग में लाना चाहिए। बारीक आटा व मैदा कम से कम अथवा कभी-कभी ही प्रयोग करना चाहिए। दाल, सब्जियों को बहुत अधिक नहीं पकाना चाहिए। आधा पका (half cook) भोजन ही पाचन व पौष्टिकता की दृष्टि से सर्वोत्तम है।
21) घी में तले हुए आलू, चिप्स आदि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तलने के स्थान पर भाप द्वारा पकाना कहीं अधिक गुणकारी व सुपाच्य होता है।
22) व्यस्त रहें, मस्त रहें के सूत्र का पालन करना चाहिए। व्यस्त दिनचर्या प्रसन्नतापूर्ण ढ़ंग से जीनी चाहिए।
23) प्रात: उठते ही दिनभर की गतिविधियों की रूपरेखा बना लेनी चाहिए व रात्रि को सोते समय दिन भर की
गतिविधियों का विश्लेषण करना चाहिए। यदि कोर्इ कभी गलती प्रतीत होती हो, तो भविष्य में उस त्रुटि को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
24) शयन के लिए बिस्तर पर मोटे बाजारू गद्दों का प्रयोग न करें, हल्के रूर्इ के गद्दों का प्रयोग करें।

स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र

1.सदा ब्रह्ममुहूर्त (पातः 4-5 बजे) में उठना चाहिए। इस समय प्रकृति मुक्तहस्त से स्वास्थ्य, प्राणवायु, प्रसन्नता, मेघा, बुद्धि की वर्षा करती है।
2.बिस्तर से उठते ही मूत्र त्याग के पश्चात उषा पान अर्थात बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा, रक्तचाप, नैत्र रोग, अपच सहित कई रोगों से हमारा बचाव करती है।
3.स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए। (जहाँ निषेध न हो)
4.स्नान के समय सर्वप्रथम जल सिर पर डालना चाहिए, ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है।
5.दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नैत्रों को शीतल जल से धोना नेत्र दृष्टि के लिए लाभकारी है।
6.नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्र त्याग अवश्य करना चाहिए। यह आदत आपको कमर दर्द, पथरी तथा मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से बचाती है।
7.सरसों, तिल या अन्य औषधीय तेल की मालिश नित्यप्रति करने से वात विकार,, बुढ़ापा, थकावट नहीं होती है। त्वचा सुन्दर , दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर पुष्ट होता है।8.शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम करना चाहिए।
9.अपच, कब्ज, अजीर्ण, मोटापा जैसी बीमारियों से बचने के लिए भोजन के 30 मिनट पहले तथा 30 मिनट बाद तक जल नहीं पीना चाहिए। भोजन के साथ जल नहीं पीना चाहिए। घूँट-दो घूँट ले सकते हैं।दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहना चाहिए।
10.भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
11.भोजन के उपरान्त वज्रासन में 5-10 मिनट बैठना तथा बांयी करवट 5-10 मिनट लेटना चाहिए।12.भोजन के तुरन्त बाद दौड़ना, तैरना, नहाना, मैथुन करना स्वास्थ्य के बहुत हानिकारक है।
13.भोजन करके तत्काल सो जाने से पाचनशक्ति का नाश हो जाता है जिसमें अजीर्ण, कब्ज, आध्मान, अम्लपित्त जैसी व्याधियाँ हो जाती है। इसलिए सायं का भोजन सोने से 2 घन्टे पूर्व हल्का एवं सुपाच्य करना चाहिए।
14.शरीर एवं मन को तरोताजा एवं क्रियाशील रखने के लिए औसतन 6-7 घन्टे की नींद आवश्यक है।गर्मी के अलावा अन्य ऋतुओं में दिन में सोने एवं रात्री में अधिक देर तक जगने से शरीर में भारीपन, ज्वर, जुकाम, सिर दर्द एवं अग्निमांध होता है।
15.दूध के साथ दही, नीबू, नमक, तिल उड़द, जामुन, मूली, मछली, करेला आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। त्वचा रोग एवं ।ससमतहल होने की सम्भावना रहती है।
16.स्वास्थ्य चाहने वाले व्यक्ति को मूत्र, मल, शुक्र, अपानवायु, वमन, छींक, डकार, जंभाई, प्यास, आँसू नींद और परिश्रमजन्य श्वास के वेगों को उत्पन्न होने के साथ ही शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए।
17.रात्री में सोने से पूर्व दाँतों की सफाई, नैत्रों की सफाई एवं पैरों को शीतल जल से धोकर सोना चाहिए।18.रात्री में शयन से पूर्व अपने किये गये कार्यों की समीक्षा कर अगले दिन की कार्य योजना बनानी चाहिए। तत्पश्चात् गहरी एवं लम्बी सहज श्वास लेकर शरीर को एवं मन को शिथिल करना चाहिए। शान्त मन से अपने दैनिक क्रियाकलाप, तनाव, चिन्ता, विचार सब परात्म चेतना को सौंपकर निश्चिंत भाव से निद्रा की गोद में जाना चाहिए।

चिंता तो चिता से बढ़कर है

"चिंता तो चिता से बढ़कर है, नर को निर्जीव बनाती है, मुर्दे को चिता जलाती है, चिंता जिंदा खा जाती है" चिंता आधुनिक मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है | 
1. चिंताएं अचानक हमला करती हैं और हम उसी वक्त उन्हें मानसिक स्तर पर सुलझाने में लग जाते हैं समस्या सुलझाने का समय तय करें। कोई चिंता हो तो नोट करें। तय समय पर समाधान के बारे में सोचें तब तक आधी चिंता वैसे ही काफूर हो जाएगी।
2. कोई भी स्थिति लंबे समय तक नहीं टिकती है। चिंता के कारण भी नहीं सिर्फ यह सोचना ही काफी राहत दे सकता है कि एक हफ्ते चिंता की वजह नहीं रहेगी तो मैं कितनी राहत महसूस करूंगा यह दौर गुजर जाएगा, यह सोच ही चिंता खत्म करने के लिए काफी है।
3. अकेले में चले जाएं। हाथ फैलाकर खुद को आकाश को समर्पित करने की भावना प्रकट करें। यही समर्पण है। जब आप ऐसा करते हैं तो अधिक नियंत्रित, अधिक संतुलित होते हैं।

Monday, 14 September 2015

हमेशा विनम्र रहें

एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्न किया। तुम्हारा जलप्रवाह इतना शक्तिशाली है कि उसमें बडे-बडे पेड़ भी बहकर आ जाते हैं । तुम पलभर में उन्हें कहां से कहां ले आती हो, लेकिन क्या कारण है कि छोटी व हल्की घास, कोमल बेलों और नम्र पौधों को बहाकर नहीं ला पाती। नदी का उत्तर था जब-जब मेरे जल का बहाव आता है, तब बेलें झुक जाती हैं और उसे रास्ता दे देती हैं। मगर पेड़ अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते, इसलिए मेरा प्रवाह उन्हें बहा ले आता है।
सीख: इस छोटे से उदाहरणसे हमें सीखना चाहिए कि जीवन में हमेशा विनम्र रहें तभी व्यक्ति का अस्तित्त्व बना रहता है।

Friday, 4 September 2015

इंसान की कीमत क्या है?

एक समय की बात है लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने पिता से पूछा, इस दुनिया में कोई अमीर है, कोई गरीब. किसी का सम्मान ज्यादा तो किसी का कम है, ऎसा क्यो। आखिर इंसान की कीमत क्या है। पिता कुछ देर शांत रहे फिर बोले, यह लोहे की छड़ देख रहे हो, इसकी कीमत तुम जानते ही हो कि यह लगभग 200 रूपए की है। यदि में इसके छोटे छोटे कील बना दूं तो इसी छड़ की कीमत लगभग 1 हजार रूपए हो जाएगी। अब तुम बताओ इसी तरह में यदि मै इस छड़ से बहुत सारे स्प्रिंग बना दूं तो।उस बच्चे ने गणना की और बोला, फिर तो इस की कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी। ठीक इसी तरह इंसान की कीमत इस बात से नहीं होती कि अभी वह क्या है, बल्कि इस बात से होती है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है। पिता ने समझाया, अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने में गलती कर देते हैं। हमारे जीवन में कई बार स्थितियां अच्छी नहीं होतीं, पर इससे हमारी कीमत कम नहीं होती। पिता की बातों से बालक समझ गया कि इंसान की कीमत क्या है।सीख: जीवन कभी एक सा नहीं रहता सुख और दुख आता जाता रहता है। इंसान को कभी हिम्मत नही हारना चाहिए और अपने जीवन की कीमत को समझना चाहिए।

Reference: Prans S http://hindi.speakingtree.in/spiritual-blogs/seekers/philosophy

Tuesday, 1 September 2015

20 बातें

1. जिदंगी मे कभी भी किसी को बेकार मत समझना क्योकी बंद पडी घडी भी दिन में दो बार सही समय बताती है।

2. किसी की बुराई तलाश करने वाले इंसान की मिसाल उस 'मक्खी' की तरह है जो सारे खूबसूरत जिस्म को छोडकर केवल जख्म पर ही   बैठती है।

3. टूट जाता है गरीबी मे वो रिशता जो खास होता है हजारो यार बनते है जब पैसा पास होता है.

4. मुस्करा कर देखो तो सारा जहाँ रंगीन है वर्ना भीगी पलको से तो आईना भी धुधंला नजर आता है

5. जल्द मिलने वाली चीजे ज्यादा दिन तक नही चलती और जो चीजे ज्यादा दिन तक चलती है वो जल्दी नही मिलती

6. बुरे दिनो का एक अच्छा फायदा अच्छे-अच्छे दोस्त परखे जाते है

7. बीमारी खरगोश की तरह आती है और कछुए की तरह जाती है जबकि पैसा कछुए की तरह आता है और खरगोश की तरह जाता है

8. छोटी छोटी बातो मे आनंद खोजना चाहिए क्योकि बड़ी बड़ी तो जीवन मे कुछ ही होती है।

9. ईशवर से कुछ मांगने पर न मिले तो उससे नाराज ना होना क्योकि ईशवर वह नही देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि वह देता   है जो आपके लिए अच्छा होता है।

10. लगातार हो रही असफलफताओ से निराश नही होना चाहिए क्योकीं कभी-कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है।

11. ये सोच है हम इसांनो की कि एक अकेला क्या कर सकता है पर देख जरा उस सूरज को वो अकेला ही तो चमकता है

12. रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो उन्हे तोङना मत क्योकि पानी चाहे कितना भी गंदा हो अगर प्यास नही बुझा सकता पर आग तो बुझा   सकता है।

13. अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला, मिटटी के बने लोग कागजो मे बिक जाते है।

14. इंसान की तरह बोलना न आये तो जानवर की तरह मौन रहना अच्छा है।

15. जब हम बोलना नही जानते थे, तो हमारे बोले बिना 'माँ' हमारी बातो को समझ जाती थी और आज हम हर बात पर  कहते है   ''छोङो भी 'माँ' आप नही समझोगी''

16. " शुक्रगुजार हूँ उन तमाम लोगो का जिन्होने बुरे वक्त मे मेरा साथ छोङ दिया क्योकि उन्हे भरोसा था कि मै मुसीबतो से अकेले ही   निपट सकता हूँ।

17. शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है

18. जिदंगी मे उतार चङाव का आना बहुत जरुरी है क्योकि ECG मे सीधी लाईन का मतलब मौत ही होता है

19. रिश्ते, आजकल रोटी की तरह हो गए जरा सी आंच तेज क्या हुई जल भुनकर खाक हो गए।


20. जिदंगी मे अच्छे लोगो की तलाश मत करो "खुद अच्छे बन जाओ" आपसे मिलकर शायद किसी की तालाश पूरी हो जाए।